हममे से हर किसी को हमेशा दुसरो में ही दोष दीखते है. अपने दोष कभी नहीं दीखते. यहाँ तक कि यदि कोई दूसरा व्यक्ति हमें कोई दोष दिखता भी है तो हमें सबसे पहले तो उसपर क्रोध आता है, उसके बाद भी जब गुस्सा शांत होता है तो भी हम यह सोचते है कि उसे अपनी कमी तो दिखती नहीं और हमारी कमी बता रहा है. जीवन को सही ढंग से जीने के लिए आवश्यक है कि सबसे पहले हम अपने दोषों तो दूर करे तब देखना दुसरो के दोष दिखने भी बंद हो जायेंगे. आज इसी बात को हम एक motivational कहानी के माध्यम से जानेंगे.
एक बार की बात है एक शादीशुदा जोड़ा किराये के मकान में रहने आया। अगली सुबह, जब वे नाश्ता कर रहे थे, तो पत्नी ने खिड़की से देखा कि सामने छत पर कुछ कपड़े बिखरे हुए थे, - "लगता है इन लोगों को कपड़े साफ करना भी नहीं आता ... देखो कितने गंदे दिखते हैं? "
पति ने उसकी बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
एक-दो दिन बाद फिर उसी जगह कुछ कपड़े बिछा दिए गए। पत्नी ने उसे देखते ही अपनी बात दोहराई….” ये लोग कब कपड़े साफ करना सीखेंगे...!!
पति अपनी कि बात सुनता रहा लेकिन इस बार भी उसने अपने मुह से कुछ नहीं कहा।
लेकिन अब यह दिन की बात हो गई है, पत्नी जब भी कपड़ों को फैला हुआ देखती है तो वह अच्छी-बुरी बातें कहने लगती है।
फिर कुछ समय के बाद वे दोनों पति-पत्नी वही उसी स्थान पर नाश्ता कर रहे थे । पत्नी ने हमेशा की तरह अपनी आँखें उठाईं और सामने की तरफ देखा, "अरे वाह, आज तो कमाल ही हो गया. ऐसा लगता है कि उसे बुद्धि मिल गई है ... आज कपड़े बहुत ही साफ़ धोये हैं, किसी ने बाधित किया होगा तभी आज कपडे इतने साफ़ दिख रहे है!"
पति ने कहा, नहीं, उसे किसी ने नहीं रोका है।
तुम्हें कैसे पता? पत्नी ने आश्चर्य से पूछा।
आज मैं सुबह जल्दी उठा और मैंने इस खिड़की के शीशे को बाहर से साफ किया, ताकि तुम कपड़े साफ देख सको, पति ने बात पूरी की.!
यही बात जीवन में लागू होती है। बहुत बार हम दूसरों को कैसे देखते हैं यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम खुद अंदर से कितने साफ हैं। किसी के बारे में अच्छा या बुरा कहने से पहले हमें अपने मूड की जांच करनी चाहिए और खुद से पूछना चाहिए कि क्या हम सामने कुछ बेहतर देखने के लिए तैयार हैं या हमारी खिड़कियां अभी भी गंदी हैं। जिस दिन आप अपने मन की खिड़की साफ़ कर लेंगे तो आपको दुसरे भी साफ़ दिखने लगेंगे.
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