Shankar ke upnishdo ka bhagy kisne likha?

शंकर के आदेश पर 'शंकर' ने उपनिषदों का भाष्य लिखा

मात्र आठ वर्ष की आयु में संन्यास की दीक्षा लेकर हाथों में दंड और मन में राष्ट्र के सनातन समाज को एक सूत्र में बांधने का अखंड संकल्प लेकर केरल के एक छोटे से गांव कालटी से संपूर्ण राष्ट्र के परिव्रजन पर निकल पड़ा बाल संन्यासी शंकर। अंततः इस दृढ़प्रतिज्ञ परिव्राजक के सपनों को जमीन मिली सर्व विद्या की राजधानी काशी में। काशी में यहां स्वयं भगवान शिव ने चारों वेदों के साथ इस किशोर दंडधारी को साक्षात दर्शन देकर उन्हें एक महान कार्य का निमित्त बनाया। स्वयं आदेश देकर शिव नगरी काशी में ही उनसे उपनिषदों का भाष्य लिखवाया। देश की चारों दिशाओं में धर्मपीठों की स्थापना के उनके संकल्पों को नवीन दैवीय ऊर्जा दी और वर देकर उन्हें शंकर से शंकराचार्य बनाया।

'काशी हिंदू विश्वविद्यालय में धर्म मीमांसा विभाग के 

प्रो. माधव जनार्दन रटाटे के अनुसार, कोई शताधिक वर्ष पहले दक्षिण भारत के प्रकांड विद्वान पं. व्यंकट शास्त्री द्वारा लिखित दुर्लभ, ग्रंथ 'श्रीशंकर चरित्रम' में इस प्रसंग का उल्लेख विस्तार से किया गया है। कथा के आधार पर अपने काशी प्रवास की दैनिकचर्या के अनुसार किशोर संन्यासी शंकर प्रतिदिन की तरह ही गंतव्य तक पहुंचने के लिए गंगा की सीढ़ियां चढ़ रहे थे तभी एक चांडाल अपने चार पुत्रों के साथ. शंकर का रास्ता रोक कर सामने खड़ा हो गया। संन्यासी ने उससे रास्ता छोड़ने को कहा, तो चांडाल की ओर से प्रतिप्रश्न हुआ हटने का यह आदेश हमारे शरीर को है या हमारी. आत्मा को शरीर नश्वर तो है किंतु 

यह आत्मा रूपी परमात्मा का घर है तो आपका यह आदेश क्या ब्रह्म की अवहेलना नहीं? शंकर को यहीं पर .तपोज्ञान प्राप्त हुआ और वह चांडाल के चरणों में गिर गए। यहीं पर उन्हें तत्काल साक्षात भगवान शिव व उनके पुत्रों के रूप में चारों वेदों के दर्शन हुए। भगवान शिव के आदेश पर ही उन्होंने काशी में उपनिषदों • का भाष्य लिखा व उसकी पूर्ति के पश्चात् भारत वर्ष की चारों दिशाओं में धर्मपीठों की स्थापना का संकल्प दीक्षा के रूप में धारण किया।

काशी में ही मिला वरद आयु का वरदान शंकर चरित्रम के अनुसार विधि के विधान में शंकर की आयु का लेखा मात्र आठ वर्ष का ही था। उनकी माता ने अगस्त्य ऋषि की आराधना से आठ वर्ष की अतिरिक्त आयु का वरदान उसमें जोड़ा। शेष अन्य 16 वर्षों की आयु उन्हें काशी में महाश्मशान मणिकर्णिका पर आशीर्वाद स्वरूप प्राप्त हुई ऋषिवर वेदव्यास की.. अनुकंपा से ग्रंथ में वृतांत आता है कि निश्चत 16 वर्ष की आयु काशी में ही समाप्त होने के बाद आद्य शंकर मणिकर्णिका पर देह दान के लिए पहुंचे। यहां स्वयं वेदव्यास ने ब्राह्मण रूप में दर्शन देकर शंकर को इस इरादें से रोका। उन्हें अभी बहुत कुछ करना है, इसकी याद दिलाई और उन्हें 16 वर्ष की वरद आयु प्रदान की। उनसे स्वयंलिखित ब्रह्म सूत्र की व्याख्या करवाई और आशीर्वाद देकर चारों

धर्मपीठों की स्थापना के लिए संपूर्ण

भारत की यात्रा के लिए रवाना किया।

Post a Comment

Previous Post Next Post