Baba Shreechand Biography in Hindi

 हिंदू धर्म एक खुला धर्म है। इसमें हजारों सम्प्रदाय, सम्प्रदाय और सम्प्रदाय हैं। इससे समय-समय पर अनेक नये सम्प्रदाय एवं सम्प्रदायों का उदय हुआ है। ये सभी मिलकर हिंदू धर्म की बहुआयामी धारा को मजबूत करते हैं। उदासीन पंथ भी ऐसा ही एक मत है। इसके प्रवर्तक बाबा श्रीचंद सिख संप्रदाय के संस्थापक गुरु नानक देव के सबसे बड़े पुत्र थे। उनका जन्म 8 सितंबर, 1449 (भादों शुक्ल 9, बनाम संवत 1551) को सुल्तानपुर (पंजाब) में हुआ था। जन्म के समय उनके शरीर पर विभूति की पतली परत और कानों में मांस की कुंडलियां थीं। इसलिए लोग उन्हें भगवान शिव का अवतार मानने लगे।

Baba Shreechand Biography in Hindi

बाबा श्रीचंद उस समय घने जंगल के एकांत में बैठते थे जब अन्य बच्चे खेलकूद में व्यस्त होते थे। जब वह बड़ा हुआ, तो उसने देश का दौरा करने की ठानी। उन्होंने तिब्बत, कश्मीर, सिंध, काबुल, कंधार, बलूचिस्तान, अफगानिस्तान, गुजरात, पुरी, कटक, गया जैसे स्थानों का दौरा किया और संतों और संतों को देखा। वे जहां भी जाते थे, अपने वचनों और चमत्कारों से गरीबों और दलितों के कष्ट दूर करते थे।

धीरे-धीरे उनकी ख्याति चारों ओर फैल गई। हिंदू राजाओं के साथ-साथ मुगल बादशाह हुमायूं, जहांगीर और कई नवाब और पीर भी अक्सर बाबा के दर्शन करने आते थे। एक बार जहांगीर ने अपने राज्य के प्रसिद्ध पीर सैयद मियां मीर से दुनिया के सबसे बड़ा आध्यात्मिक राजा के बारे में एक प्रश्न पूछा कि इस समय सबसे बड़ा आध्यात्मिक राजा कौन है? इस पर मियां मीर ने कहा कि पंजाब की धरती पर रहने वाले बाबा श्रीचंद पीर के पीर और फकीरों के शाह हैं।

एक बार कश्मीर की यात्रा के दौरान बाबा अपनी मस्ती में धूप में बैठे थे। एक अभिमानी जमींदार ने यह देखकर कहा कि यह बाबा स्वयं धूप में बैठा है, दूसरों को क्या छाया देगा? इस पर बाबा श्रीचंद ने यज्ञकुंड से जलती हुई चिनार की लकड़ी निकालकर जमीन में गाड़ दी। कुछ ही समय में वह एक विशाल वृक्ष में बदल गया। यह देख जमींदार ने बाबा के पैर पकड़ लिए। वह पेड़ आज भी वहां 'श्रीचंद चिनार' के नाम से मौजूद है।

रावी नदी के तट पर चंबा शहर के राजा के आदेश से, कोई भी नाविक नदी के उस पार किसी संत-महात्मा को नहीं मिला सकता था। एक बार बाबा नदी पार करना चाहते थे। जब एक नाविक राजा के डर से तैयार नहीं हुआ, तो उसने एक बड़ी चट्टान को नदी में धकेल दिया और उस पर बैठ कर नदी को पार कर गया। जब राजा को इस बात का पता चला तो वह दौड़कर बाबा के चरणों में गिर पड़ा।

अब बाबा श्रीचंद ने उन्हें सत्य और धर्म का उपदेश दिया, जिससे उनका अहंकार नष्ट हो गया। उन्होंने भविष्य में सभी संतों और संतों का सम्मान करने का वादा किया। इस पर बाबा ने उन्हें आशीर्वाद दिया। इससे उस राजा के घर में एक पुत्र का जन्म भी हुआ। यह चट्टान आज भी रावी तट पर चंबा में मौजूद है। प्रतिदिन विधि-विधान से इसकी पूजा की जाती है।

बाबा का विचार था कि हमें हर सुख-दुःख को साक्षी भाव से देखना चाहिए। इसमें लिप्त न होने और उसके प्रति उदासीन रवैया रखने से मन को कष्ट नहीं होता है। सिक्खों के छठे गुरु श्री हरगोबिंद जी के ज्येष्ठ पुत्र बाबा गुरदिता जी को अपना उत्तराधिकारी बनाकर बाबा ने अपने देश को आच्छादित कर लिया।

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