दया करते समय व्यापार मत करना

 *हमेशा की तरह दोपहर को सब्जीवाली दरवाजे पर आई और चिल्लाई, चाची, "आपको सब्जियां लेनी हैं?*


*माँ हमेशा की तरह अंदर से चिल्लाई, "सब्जियों में क्या-क्या है?"*


*सब्जीवाली :-  पालक,*

 *आलू , टमाटर,मटर....*


*दरवाजे पर आकर माँ ने सब्जी के सिर पर भार देखा और पूछा, "पालक कैसे दिया?"*


*सब्जीवाली :-*

*दस रुपए की एक गठी।*

*मां:- पच्चीस रुपए में चार दो।*

*सब्जीवाली:- चाची नहीं जमेगा।*

*मां : तो रहने दो।*


*सब्जीवाली आगे बढ़ गयी, पर वापस आ गई।*

*सब्जीवाली:- तीस रुपये में चार दूंगी।*

*मां:- नहीं, पच्चीस रुपए में चार लूंगी।*

*सब्जीवाली :- चाची बिलकुल नहीं जमेगा.*


*और वो फिर चली गयी..*


*थोड़ा आगे जाकर वापस फिर लौट आई। दरवाजे पर माँ अब भी खड़ी थी, पता था सब्जीवाली फिर लौट कर आएगी। अब सब्जीवाली पच्चीस रुपये में चार देने को तैयार थी।*


*माँ ने सब्जी की टोकरी उतरने में मदद की, ध्यान से पलक कि चार गठीयाँ परख कर ली और पच्चीस रुपये का भुगतान किया। जैसे ही सब्जीवाली ने सब्जी का भार उठाना शुरू किया, उसे चक्कर आने लगा। माँ ने उत्सुकता से पूछा,*


*क्या तुमने खाना खा लिया?*


*सब्जीवाली:- नई चाची, सब्जियां बिक जाएँ, तो किरना खरीदूंगी, फिर खाना बनाकर खाऊँगी।*


*माँ: एक मिनट रुको बस यहाँ।*


*और फिर माँ ने उसे एक थाली में रोटी, सब्जी, चटनी, चावल और दाल परोस दिया, सब्जीवाली के खाने के बाद पानी दिया और एक केला भी थमाया।*


*सब्जीवाली धन्यवाद* 

*बोलकर चली गयी।*


*मुझसे  नहीं रहा गया।* 

*मैंने अपनी माँ से पूछा,*


*"आपने इतनी बेरहमी से कीमत कम करवाई, लेकिन फिर जितना तुमने बचाया उससे ज्यादा का सब्जीवाली को खिलाया।"*


*माँ हँसी और उन्होंने जो कहा वह मेरे दिमाग में आज तक अंकित है एक सीख कि तरह.....*


*व्यापार करते समय दया मत करो,*

*किन्तु दया करते समय व्यापार मत करो!*

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