Amir Ali Pathan and Maharaval Lunkaran Story in Hindi

 जब कंधार के तत्कालीन शासक अमीर अली खान पठान को मजबूर हो कर जैसलमेर राज्य में शरण लेनी पड़ी तब यहाँ के महारावल लूणकरण थे वे महारावल जैतसिंह के जेष्ठ पुत्र होने के कारण उनके बाद यहां के शासक बने वैसे उनकी कधार के शासक अमीर अली खान पठान से पहले से ही मित्रता थी और विपत्ति के समय मित्र ही के काम आता है ये सोचते हुए उन्होंने सहर्ष अमीर अली खान पठान को जैसलमेर का राजकीय अतिथि स्वीकार कर लिया ...…

लम्बे समय से दुर्ग में रहते हुए अमीर अली खान पठान को किले की व्यवस्था और गुप्त मार्ग की सारी जानकारी मिल चुकी थी उसके मन में किले को जीत कर जैसलमेर राज्य पर अधिकार करने का लालच आने लगा और वह षड्यंत्र रचते हुए सही समय की प्रतीक्षा करने लगा ...…

इधर महारावल लूणकरण भाटी अपने मित्र अमीर अली खान पठान पर आंख मूंद कर पूरा विश्वास करते थे वो स्वप्न में भी ये सोच नहीं सकते थे कि उनका मित्र कभी ऐसा कुछ करेगा इधर राजकुमार मालदेव अपने कुछ मित्रों और सामंतों के साथ शिकार पर निकल पड़े अमीर अली खान पठान बस इस मौके की ताक में ही था उसने महारावल लूणकरण भाटी को संदेश भिजवाया की वो आज्ञा दे तो उनकी पर्दा नवीन बेगमें रानिवास में जाकर उनकी रानियों और राजपरिवार की महिलाओं से मिलना चाहती है ...…

फिर क्या होना था? वही जिसका अनुमान पूर्व से ही अमीर अली खान पठान को था महारावल ने सहर्ष बेगमों को रानिवास में जाने की आज्ञा दे दी इधर बहुत सारी पर्दे वाली पालकियों के अंदर से भारी भरकम आवाजें सुनाई दीं तो उन्हें थोड़ा सा शक हुआ उन्होंने एक पालकों का पर्दा हटा कर देखा तो वहां बेगमों की जगह दो तीन सैनिकों छिपे हुए थे जब अचानक षड्यंत्र का भांडा फूटते ही वहीं पर आपस में मार-काट शुरू हो गई ...…

दुर्ग में जिसके भी पास जो हथियार था वो लेकर महल की ओर महारावल और उनके परिवार की रक्षा के लिए दौड़ पड़ा चारों ओर अफरा तफरी मच गई किसी को भी अमीर अली खान पठान के इस विश्वासघात की पहले भनक तक नहीं थी कोलाहल सुनकर दुर्ग के सबसे ऊंचे बुर्ज पर बैठे प्रहरियों ने संकट के ढोल-नगाड़े बजाने शुरू दिए जिसकी धुर्राने की आवाज दस-दस कोश तक सुनाई देने लगी महारावल ने रानिवास की सब महिलाओं को बुला कर अचानक आए हुए संकट के बारे में बताया ...…

अब अमीर अली खान पठान से आमने-सामने युद्ध करने के सिवाय और कोई उपाय नहीं था राजकुमार मालदेव और सामंत पता नहीं कब तक लौटेंगे दुर्ग से बाहर निकलने के सारे मार्ग पहले ही बंद किए जा चुके थे ...…

राजपरिवार की स्त्रियों को अपनी इज्जत बचाने के लिए जौहर के सिवाय कुछ और उपाय नहीं दिखाई दे रहा था अचानक से किया गया आक्रमण बहुत ही भयकर था और महल में जौहर के लिए लकड़ियां भी बहुत कम थी इसलिए सब महिलाओं ने महारावल के सामने अपने अपने सिर आगे कर दिये और सदा सदा के लिए बलिदान हो गई महारावल केसरिया बाना पहन कर युद्ध करते हुए रणभूमि में बलिदान हो गए ...…

महारावल लूणकरण भाटी को अपने परिवार सहित चार भाई, तीन पुत्रों के साथ को कई विश्वास पात्र वीरों को खोकर मित्रता की कीमत चुकानी पड़ी ...…

इधर रण दुंदुभियों की आवाज सुनकर राजकुमार मालदेव दुर्ग की तरफ दौड़ पड़े वे अपने सामंतों और सैनिकों को लेकर महल के गुप्त द्वार से किले में प्रवेश कर गए और अमीर अली खान पठान पर प्रचंड आक्रमण कर दिया ...…

अमीर अली खान पठान को इस आक्रमण को बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी अंत में उसे पकड़ लिया गया और चमड़े के बने कुड़िए में बंद करके दुर्ग के दक्षिणी बुर्ज पर तोप के मुंह पर बांध कर उड़ा दिया गया इतिहास की कई सैकड़ों ऐसी घटनाएं है जिससे हम वर्तमान में बहुत कुछ सीख सकते हैं आज अफगान संकट को देखते हुए कई लोग ये कह रहे हैं हमें इन्हें यहां शरण देनी चाहिए पर उससे क्या होगा? कल ये ही अगर यहां यह कहते हुए हमें दिखाई दे कि हिन्दुस्तान तुम्हारे बाप का नहीं तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा !!!!!!!!!

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