लखीमपुर खीरी कांड

 राजनीतिक रोटियां सेंकने की होड़ : ―

राजनीतिक दलों के रवैये से साफ है कि वे न तो लखीमपुर खीरी कांड की जांच का इंतजार करने वाले हैं और न ही उसके नतीजे से संतुष्ट होने वाले है ...…

कृषि कानून विरोधी आंदोलन जैसे तेवरों के साथ लैस था उसमें वैसी किसी घटना का अंदेशा बढ़ गया था जैसी लखीमपुर खीरी में हुई और जिसमें आठ लोग मारे गए ...…

यहां किसान संगठन केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र के उस बयान से कुपित थे जिसमें उन्होंने आंदोलनरत किसानों को सुधार देने की चेतावनी दी थी इस आक्रोश में विपक्षी दलों के नेता भी शामिल हो गए और फिर किसान संगठनों ने इलाके में भाजपा के कार्यक्रमों का विरोध करना शुरू कर दिया इससे आग में घी डालने वाला माहौल बनना शुरू हो गया इसी माहौल में वह घटना घटी जिसमें भाजपा कार्यकर्ताओं के काफिले की कार किसानों से जा टकराई इस टक्कर में चार किसान मारे गए बाद में तथाकथित किसान गुंडों ने कार सवार तीन लोगों को पीट-पीटकर मार दिया इस हिंसक घटना में एक पत्रकार भी मारा गया ...…

फिलहाल यह स्पष्ट नहीं कि उसकी मौत किन परिस्थितियों में हुई इसके लिए जांच करना होगा जांच से ही यह भी पता चलेगा कि कार ने जानबूझकर टक्कर मारी या फिर उस पर हमले के बाद वह अनियंत्रित होकर किसानों से जा टकराई और जिन्हें पीट-पीटकर मार दिए गए उनके लिए कौन जिम्मेदार है???

हालांकि योगी सरकार ने सूझबूझ दिखाते हुए किसानों और प्रशासन के बीच समझौता करा दिया लेकिन इसमें संदेह है कि देश के ये गैरजिम्मेदार विपक्षी दल संवेदना दिखाने के नाम पर राजनीति करने से पीछे हटेंगे इसके आसार इसलिए नहीं क्योंकि उत्तर प्रदेश और पंजाब में चुनाव होने हैं ...…

विपक्षी दल चुनाव तक लखीमपुर खीरी कांड को कुरेदने और अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने का कोई मौका नहीं छोड़ेंगे वे योगी सरकार के साथ केंद्र की मोदी सरकार को भी घेरेंगे क्योंकि अजय मिश्र केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हैं और उनके ही बेटे आशीष मिश्र पर यह आरोप है कि वह उस काफिले में था जिसकी कार ने किसानों को टक्कर मारी राजनीतिक दलों के रवैये से यह भी साफ है कि वे न तो जांच का इंतजार करने वाले हैं और न ही उसके नतीजे से संतुष्ट होने वाले है ...…

यह अच्छा है कि उच्चतम न्यायालय ने लखीमपुर कांड में हस्तक्षेप किया लेकिन कहना कठिन है कि उसका दखल विपक्षी दलों को राजनीति करने से रोक पाएगा किसान आंदोलन के बहाने राजनीति करने में सबसे ज्यादा कांग्रेस सक्रिय है यह वही कांग्रेस है जिसने अपने घोषणा पत्र में वैसे ही कृषि कानून बनाने का वादा किया था जैसे मोदी सरकार ने बनाए है ...…

राहुल और प्रियंका वाड्रा के नेतृत्व में कांग्रेस किसानों को उकसा कर चुनावी लाभ लेने की कोशिश तो खूब कर रही है लेकिन यह नहीं बता रही है कि कैसे कृषि कानून बनाए जाने चाहिए???

यदि वह यह कह रही है कि किसी तरह के नए कानून बनाने की जरूरत ही नहीं तो इसका मतलब है कि वह किसानों का भला ही नहीं चाहती कांग्रेस किसान संगठनों को कितना भी उकसाए कृषि कानूनों पर उसके विरोधाभासी रुख के कारण उसे राजनीतिक लाभ मिलने वाला नहीं है ...…

लखीमपुर कांड के बाद विपक्षी दलों के साथ किसान संगठन भी उग्र नजर आ रहे हैं इस उग्रता के बीच किसान संगठनों की ओर से उठाए जा रहे मुद्दे पीछे जा रहे हैं जो किसान संगठन अभी तक इन कानूनों की वापसी पर अड़े थे वे अब केंद्रीय मंत्री के इस्तीफे और उसके बेटे की गिरफ्तारी की मांग पर जोर दे रहे हैं हालांकि किसान संगठन और साथ ही उसका साथ दे रहे राजनीतिक दल इस कोशिश में है कि यह आंदोलन देश भर में फैले लेकिन वह पंजाब हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश तक ही सीमित है ...…

क्योंकि इस आंदोलन को इन्हीं इलाकों के धनी किसान और आढ़ती एवं बिचौलिये चला रहे है इस आंदोलन में आम किसानों और खासकर छोटे किसानों की भागीदारी न पहले थी और न अब है क्योंकि उन्हें इस आंदोलन में अपना कोई हित नहीं दिख रहा है समझना कठिन है कि बड़े किसान यह क्यों नहीं चाहते कि आम किसान बिना किसी बिचौलिये के अपनी फसल मनचाही जगह बेच सके???

किसान संगठनों की और से आंदोलन के नाम पर दिल्ली को धेरे हुए दस माह हो चुके हैं इस घेरेबंदी से लाखों लोग परेशान हो रहे हैं लेकिन उनकी कोई चिंता नहीं की जा रही है किसान संगठन अपने आंदोलन से होने वाली राजस्व हानि की भी कोई चिंता नहीं कर रहे है ...…

इस घेरेबंदी के कारण तमाम उद्योग-धंधे चौपट है लेकिन किसान संगठन बेपरवाह है इस घेरेबंदी का भी उच्चतम न्यायालय ने संज्ञान लिया है लेकिन जब तक राहत न मिल जाए तब तक कुछ कहना कठिन है यह कहना भी कठिन है कि उच्चतम न्यायालय अपनी उस समिति की रिपोर्ट पर कब गौर करेगा जिसका गठन खुद उसने किया था और जिसे कृषि कानूनों की समीक्षा का काम दिया गया था ...…

इस समिति ने मार्च में ही अपनी रिपोर्ट उसे सौंप दी थी लेकिन कोई नहीं जानता कि उसका संज्ञान क्यों नहीं लिया जा रहा है? किसान संगठनों के आंदोलन पर उच्चतम न्यायालय ने यह टिप्पणी की है कि जिन कानूनों का अमल रोक दिया गया हो और जो मामला अदालत में हो उस पर धरना प्रदर्शन कैसे किया जा सकता है???

लेकिन इसका कोई असर किसान नेताओं पर पड़ता नहीं दिख रहा है वे यही कहने में लगे हुए है कि उन्हें आंदोलन करने से कोई नहीं रोक सकता लेकिन इसका कोई औचित्य नहीं कि आंदोलन करने के नाम पर वे लोगों को तंग करें और रास्ते रोकें ...…

लखीमपुर कांड के बाद यह कहना और कठिन हो गया है कि किसान संगठन कब तक दिल्ली को घेरे रहेंगे ऐसे में आवश्यक है कि केंद्र सरकार इस आंदोलन को खत्म कराने की पहल करे अन्यथा लखीमपुर जैसी घटनाएं आगे भी हो सकती हैं केंद्र सरकार छोटे किसानों के बीच सक्रिय हो और उन्हें कृषि कानूनों के लाभों से परिचित कराए यदि वह यह ऐसा करती तो शायद बड़े किसानों का आंदोलन पहले ही कमजोर पड़ जाता लगता है कि केंद्र सरकार उच्चतम न्यायालय के फैसले का इंतजार भर कर रही है यह ठीक नहीं उसे उन आम किसानों के बीच जाना चाहिए जिन्हें नए कृषि कानूनों से सबसे ज्यादा लाभ मिलना है lllllllll

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