*अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳*
*क्रमांक=०८*
*_दीपावली के दूसरे दिन नूतन वर्ष, बलि बलिप्रतिपदा, गोवर्धन पूजन में क्या करें?_*
_🚩दीपावली का दूसरा दिन अर्थात् नूतन वर्ष का प्रथम दिन (गुजराती पंचांग अनुसार) जो वर्ष के प्रथम दिन हर्ष, दैन्य आदि जिस भाव में रहता है, उसका संपूर्ण वर्ष उसी भाव में बीतता है।'महाभारत' में पितामह भीष्म महाराज युधिष्ठिर से कहते हैं-_
_यो यादृशेन भावेन तिष्ठत्यस्यां युधिष्ठिर।_
_हर्षदैन्यादिरूपेण तस्य वर्षं प्रयाति वै।।_
_🚩'हे युधिष्ठिर ! आज नूतन वर्ष के प्रथम दिन जो मनुष्य हर्ष में रहता है उसका पूरा वर्ष हर्ष में जाता है और जो शोक में रहता है, उसका पूरा वर्ष शोक में ही व्यतीत होता है।'_
_🚩अतः वर्ष का प्रथम दिन हर्ष में बीते, ऐसा प्रयत्न करें। वर्ष का प्रथम दिन दीनता-हीनता अथवा पाप-ताप में न बीते वरन् शुभ चिंतन में, सत्कर्मों में प्रसन्नता में बीते ऐसा यत्न करें।_
_🚩आज के दिन से हमारे नूतन वर्ष का प्रारंभ भी होता है। इसलिए भी हमें अपने इस नूतन वर्ष में कुछ ऊँची उड़ान भरने का संकल्प करना चाहिए।_
*🚩बलिप्रतिपदा:-*
_कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा, बलिप्रतिपदा के रूप में मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्री विष्णु ने दैत्यराज बलि को पाताल में भेजकर बलि की अतिदानशीलता के कारण होनेवाली सृष्टि की हानि रोकी। बलिराजा की अतिउदारता के परिणामस्वरूप अपात्र लोगों के हाथों में संपत्ति जाने से सर्वत्र त्राहि-त्राहि मच गई। तब वामन अवतार लेकर भगवान श्रीविष्णु ने बलिराजा से त्रिपाद भूमिका दान मांगा। उपरांत वामनदेव ने विराट रूप धारण कर दो पग में ही संपूर्ण पृथ्वी एवं अंतरिक्ष व्याप लिया। तब तीसरा पग रखने के लिए बलिराजा ने उन्हें अपना सिर दिया। वामनदेव ने बलि को पाताल में भेजते समय वर मांगने के लिए कहा। उस समय बलि ने वर्ष में तीन दिन पृथ्वी पर बलिराज्य होने का वर मांगा। वे तीन दिन हैं – नरक चतुर्दशी, दीपावली की अमावस्या एवं बलिप्रतिपदा । तब से इन तीन दिनों को ‘बलिराज्य’ कहते है।_
*🚩गोवर्धनपूजन*
_इस दिन गोवर्धनपूजा करने की प्रथा है। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इस दिन इंद्रपूजन के स्थान पर गोवर्धनपूजन आरंभ किए जाने के स्मरण में गोवर्धन पूजन करते है। इसके लिए कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा की तिथि पर प्रात:काल घर के मुख्य द्वार के सामने गौ के गोबर का गोवर्धन पर्वत बना कर उसपर दूर्वा एवं पुष्प डालते हैं । शास्त्र में बताया है कि, इस दिन गोवर्धन पर्वत का शिखर बनाएं । वृक्ष-शाखादि और फूलों से उसे सुशोभित करें । इनके समीप कृष्ण, इंद्र, गाएं, बछड़ों के चित्र सजाकर उनकी भी पूजा करते हैं एवं झांकियां निकालते हैं । परंतु अनेक स्थानों पर इसे मनुष्य के रूप में बनाते हैं और फूल इत्यादि से सजाते हैं । चंदन, फूल इत्यादि से उसका पूजन करते हैं और प्रार्थना करते हैं,_
_गोवर्धन धराधार गोकुलत्राणकारक ।_
_विष्णुबाहुकृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रदो भव ।। – धर्मसिंधु_
_🚩इसका अर्थ है, पृथ्वी को धारण करनेवाले गोवर्धन ! आप गोकुलके रक्षक हैं । भगवान श्रीकृष्ण ने आपको भुजाओं में उठाया था । आप मुझे करोड़ों गौएं प्रदान करें । गोवर्धन पूजन के उपरांत गौओं एवं बैलों को वस्त्राभूषणों तथा मालाओं से सजाते हैं । गौओं का पूजन करते हैं । गौमाता साक्षात धरतीमाता की प्रतीकस्वरूपा हैं । उनमें सर्व देवतातत्त्व समाए रहते हैं । उनके द्वारा पंचरस प्राप्त होते हैं, जो जीवों को पुष्ट और सात्त्विक बनाते हैं । ऐसी गौमाताको साक्षात श्री लक्ष्मी मानते हैं । उनका पूजन करने के उपरांत अपने पापनाश के लिए उनसे प्रार्थना करते हैं । धर्मसिंधु में इस श्लोक द्वारा गौमाता से प्रार्थना की है,_
_लक्ष्मीर्या लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता।_
_घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु।। – धर्मसिंधु_
_🚩इसका अर्थ है, धेनुरूप में विद्यमान जो लोकपालों की साक्षात लक्ष्मी हैं तथा जो यज्ञ के लिए घी देती हैं, वह गौमाता मेरे पापों का नाश करें । पूजन के उपरांत गौओं को विशेष भोजन खिलाते हैं । कुछ स्थानों पर गोवर्धन के साथ ही भगवान श्रीकृष्ण, गोपाल, इंद्र तथा सवत्स गौओंके चित्र सजाकर उनका पूजन करते हैं और उनकी शोभायात्रा भी निकालते हैं।_
_🚩दीपावली वर्ष का आखिरी दिन है और नूतन वर्ष प्रथम दिन है। यह दिन आपके जीवन की डायरी का पन्ना बदलने का दिन है।_
_🚩दीपावली की रात्रि में वर्षभर के कृत्यों का सिंहावलोकन करके आनेवाले नूतन वर्ष के लिए शुभ संकल्प करके सोयें। उस संकल्प को पूर्ण करने के लिए नववर्ष के प्रभात में अपने माता-पिता, गुरुजनों, सज्जनों, साधु-संतों को प्रणाम करके तथा अपने सदगुरु के श्रीचरणों में और मंदिर में जाकर नूतन वर्ष के नये प्रकाश, नये उत्साह और नयी प्रेरणा के लिए आशीर्वाद प्राप्त करें। जीवन में नित्य-निरंतर नवीन रस, आत्म रस, आत्मानंद मिलता रहे, ऐसा अवसर जुटाने का दिन है 'नूतन वर्ष।