भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ तो माँ सीता ने भी सहर्ष वनवास स्वीकार कर लिया! परन्तु बचपन से ही बड़े भाई की सेवा मे रहने वाले लक्ष्मण जी कैसे राम जी से दूर हो जाते! माता सुमित्रा से तो उन्होंने आज्ञा ले ली थी, वन जाने की, परन्तु जब पत्नी उर्मिला के कक्ष की ओर बढ़ रहे थे तो मन में विचारों का झंझावात आया कि माँ ने तो आज्ञा दे दी, परन्तु उर्मिला को कैसे समझाऊंगा ! क्या कहूँगा ! यदि बिना बताए जाऊँगा तो रो रो के प्राण दे देगी और यदि बताया तो साथ जाने का हठ करने लगेगी और कहेगी कि यदि सीता जी अपने पति के साथ जा सकती हैं तो मैं क्यों नहीं !!
यही विचार करके लक्ष्मण जी जैसे ही अपने कक्ष में पहुँचे तो देखा कि उर्मिला आरती का थाल लेके खड़ी थीं और बोलीं- "आप मेरी चिंता छोड़ प्रभु की सेवा में वन को जाओ ! मैं आपको नहीं रोकूंँगी, मेरे कारण आपकी सेवा में कोई बाधा न आये, इसलिये साथ जाने की प्रार्थना भी नहीं करूँगी" !!
लक्ष्मण जी को कहने में संकोच हो रहा था! परन्तु उनके कुछ कहने से पहले ही उर्मिला ने उन्हें संकोच से बाहर निकाल दिया! वास्तव में यहीं पत्नी का धर्म है! पति संकोच में पड़े, उससे पहले ही पत्नी उसके मन की बात जानकर उसे संकोच से बाहर कर दे ! पत्नी का इतना त्याग और प्रेम देखकर लक्ष्मण जी की आँखें भर आयी! उर्मिला ने एक दीपक जलाया और विनती की कि आपके आने तक आपकी प्रतीक्षा में यह दीपक सदैव प्रदीप्त रहेगा, इसको मैं और मेरी आशा को कभी बुझने नहीं देना !!
लक्ष्मण तो चले गये परन्तु 14 वर्ष तक उर्मिला ने एक तपस्विनी की भांति कठोर तप किया! वन में भैया-भाभी की सेवा में लक्ष्मण जी कभी सोये नहीं परन्तु उर्मिला ने भी अपने महलों के द्वार कभी बंद नहीं किये और सारी रात जाग जागकर उस दीपक की लौ को बुझने नहीं दिया !!
मेघनाथ से युद्ध करते हुए जब लक्ष्मण को शक्ति लग जाती है और हनुमान जी उनके लिये संजीवनी का पर्वत लेकर लौट रहे होते हैं, तो बीच में ही अयोध्या में भरत जी उन्हें राक्षस समझकर बाण मारते हैं और हनुमान जी गिर जाते हैं! तब हनुमान जी सारा वृत्तांत सुनाते हैं कि सीता जी को रावण ले गया, लक्ष्मण मूर्छित हैं !!
यह सुनते ही कौशल्या जी कहती हैं कि राम को कहना कि लक्ष्मण के बिना अयोध्या में पैर भी मत रखना! राम वन में ही रहे! माता सुमित्रा कहती हैं कि राम से कहना कि कोई बात नहीं! अभी शत्रुघ्न है! मैं उसे भेज दूंगी! मेरे दोनों पुत्र राम सेवा के लिये ही तो जन्मे हैं! माताओं का प्रेम देखकर हनुमान जी की आँखों से अश्रुधारा बह रही थी! परन्तु जब उन्होंने उर्मिला को देखा तो सोचने लगे कि यह क्यों एकदम शांत और प्रसन्न खड़ी हैं ? क्या इन्हें अपनी पति के प्राणों की कोई चिंता नहीं ??
हनुमान जी पूछते हैं- देवी !
आपकी प्रसन्नता का कारण क्या है ?
आपके पति के प्राण संकट में हैं !
सूर्य उदित होते ही सूर्य कुल का दीपक बुझ जायेगा !!
उर्मिला का उत्तर सुनकर तीनों लोकों का कोई भी प्राणी उनकी वंदना किये बिना नहीं रह पाएगा !
उर्मिला बोलीं- मेरा दीपक संकट में नहीं है, वो बुझ ही नहीं सकता !!
रही सूर्योदय की बात तो आप चाहें तो कुछ दिन अयोध्या में विश्राम कर लीजिये, क्योंकि आपके वहाँ पहुंचे बिना सूर्य उदित हो ही नहीं सकता !!
आपने कहा कि प्रभु श्रीराम, मेरे पति को अपनी गोद में लेकर बैठे हैं!
जो “योगेश्वर प्रभु श्री राम” की गोदी में लेटा हो, काल उसे छू भी नहीं सकता !!
यह तो वो दोनों लीला कर रहे हैं..
मेरे पति जब से वन गये हैं, तबसे सोये नहीं हैं!
उन्होंने न सोने का प्रण लिया था..इसलिए वे थोड़ी देर विश्राम कर रहे हैं..और जब भगवान् की गोद मिल गयी तो थोड़ा विश्राम ज्यादा हो गया...वे उठ जायेंगे !!
और "शक्ति" मेरे पति को लगी ही नहीं, शक्ति तो प्रभु श्री राम जी को लगी है !!
मेरे पति की हर श्वास में राम हैं, हर धड़कन में राम हैं, उनके रोम रोम में राम हैं, उनके खून की बूंद बूंद में राम हैं और जब उनके शरीर और आत्मा में ही सिर्फ राम हैं, तो शक्ति राम जी को ही लगी, दर्द राम जी को ही हो रहा !!
इसलिये हनुमान जी आप निश्चिन्त हो के जाएँ ! सूर्य उदित नहीं होगा !!
वास्तव में सूर्य में भी इतनी शक्ति नहीं थी कि लक्ष्मण जी के जागने से पहले वो उदित हो जाते! एक पतिव्रता तपस्विनी का तप उनके सामने खड़ा था और मेघनाथ को भी लक्ष्मण जी ने नहीं, अयोध्या में बैठी एक तपस्विनी उर्मिला ने मारा !!
राम राज्य की नींव जनक जी की बेटियाँ ही थीं..!
कभी “सीता” तो कभी “उर्मिला”!!
भगवान् राम ने तो केवल राम राज्य का कलश स्थापित किया *परन्तु वास्तव में राम राज्य इन सबके प्रेम, त्याग, समर्पण और बलिदान से ही आया !!
पतिव्रता नारी के सम्मुख तो देवता भी नतमस्तक हो जाते है! यही सनातन धर्म की शक्ति है !!
जिस मनुष्य में प्रेम, त्याग, समर्पण की भावना हो उस मनुष्य में राम ही बसता है !
कभी समय मिले तो अपने वेद, पुराण, गीता, रामायण को पढ़ने और समझने का प्रयास करें, जीवन को एक अलग नज़रिए से देखने और जीने का नज़रिया मिलेगा !!
लक्ष्मण सा भाई हो, कौशल्या माई हो,
स्वामी तुम जैसा, मेरा रघुराई हो !
नगरी हो अयोध्या सी, रघुकुल सा घराना हो,
चरण हो राघव के, जहाँ मेरा ठिकाना हो !!
हो त्याग भरत जैसा, सीता सी नारी हो,
लव कुश के जैसी, संतान हमारी हो !
श्रद्धा हो श्रवण जैसी,सबरी सी भक्ति हो,
हनुमत के जैसी निष्ठा और शक्ति हो !!
ये रामायण है-पुण्य कथा श्रीराम की।