क्या अर्जुन का कारण को मारना सही था?

🌳🦚एक कहानी सुंदर सी🦚🌳
💐💐एनकाउंटर💐💐
"रुक जाओ पार्थ !"
तुम श्रेष्ठ धनुर्धर हो । तुम्हें ब्रह्मास्त्र तक का ज्ञान है । फिर एक निःशस्त्र योद्धा पर अस्त्र चलाकर क्यों अपनी विद्या को लांक्षित करते हो । याद रखो ये नीति विरुद्ध है ।" अपनी मृत्यु को सन्निनिकट देख कर्ण ने अर्जुन से नीतिगत व्यवहार करने का अनुनय किया ।
पार्थ सोच में पड़ गये । उनके हाथ जड़वत हो गये । गुरु कृपचार्य की सिखायी नीति के पाठ उन्हें स्मरण हो आये । परिणामस्वरूप उनके आह्वान पर प्रकट हुआ अंजुलिकास्त्र अंतर्ध्यान हो गया ।

अर्जुन की शिथिल अवस्था योगीश्वर श्री कृष्ण से छिपी न रह सकी । अर्जुन को समय जाया करते देख केशव की त्यौरियां चढ़ गयीं । क्रोधित कृष्ण अर्जुन को आदेशित करते हुये बोले । "ठिठक क्यों गये पार्थ । शरसंधान करो ।"

पर माधव ! कर्ण अर्धरथी है और अभी रथ विहीन है । ऐसे में धर्म का आह्वान कर युद्ध करने वाला योद्धा एक निःशस्त्र पर अस्त्र कैसे चला दे । यह तो अनैतिक होगा न माधव । इससे कर्ण का वध तो हो जायेगा पर कर्ण के साथ न्याय कहाँ होगा ? " शंकालु अर्जुन ने माधव से प्रतिप्रश्न किया ।

कर्ण के साथ न्याय पार्थ ??? किस कर्ण के साथ न्याय करना चाहते हो सखा ??

उस कर्ण के साथ जिसने तुम्हारी माँ और भाइयों समेत तुम्हें वर्णावर्त में जिंदा जलाने के षड्यंत्र में सहायता की ?

या उस कर्ण को जो स्वयंवर के बाद अपने सामर्थ्य के बल पर एक विवाहित अबला को अपह्रत करने के लिये तुमसे युद्ध करने के लिए सज्ज हो गया ?

"क्या उस कर्ण के लिये न्याय जिसने कुरुवंश की कुलवधू अक्षत यौवना द्रौपदी को वेश्या कहा ?"
या उस तथाकथित महारथी के लिये न्याय जिसने 17 वर्ष के बालक के वक्ष में खंजर घोंप दिया ?? "

योगीश्वर ने बोलना जारी रखा । 

श्रीमद्भागवत गीता के अप्रतिम ज्ञान को प्राप्त करने के बावजूद तुम नीति, अनीति और व्यवहारिकता के बीच का महीन अंतर नहीं जानते ?

धर्म स्थापना के लिये उठाया गया हर कदम नीतिगत होता है पार्थ । तनिक सोचो यदि भगवान आशुतोष का प्रसाद ये विजय धनुष यदि पुनः कर्ण के हाथों में सुसज्जित हो गया तो न जाने कितने निर्दोषों का रक्त व्यर्थ इस कुरुक्षेत्र में बहेगा । हजारों हजार स्त्रियाँ विधवा होंगी और बच्चे अनाथ । उन्हें किस तरह नीति से सम्बल प्रदान करोगे पार्थ ?"

याद रखो एक अधर्मी को संकट काल के समय नीति का स्मरण हो ही जाता है । और यही नीति की दुहाई देने वाले अपना समय आने पर अनीति की हर सीमा को लाँघ जाते हैं । इसीलिये इनका वध करने हेतु शरसंधान के लिये किसी नीति का स्मरण रखना जरूरी नहीं ।।

किन्तु माधव ... " अर्जुन ने पुनः तर्क करने की कोशिश की ।

कोई किन्तु कोई परन्तु नहीं " अर्जुन की बात बीच में काट पंचम स्वर में केशव चीख उठे । "उठाओ गांडीव ... करो शरसंधान और अभी के अभी अंजुलीकास्त्र का प्रयोग कर इस अधर्मी को इसके पापों की सजा दो पार्थ ।"

तुरन्त अर्जुन ने शरसंधान किया । गांडीव से अंजुलिकास्त्र का आह्वान हुआ । कर्णरंध्र तक प्रत्यंचा खिंची और सनसनाते हुये पार्थ के शरों ने कर्ण की ग्रीवा का रक्त चख लिया । अगले ही पल 'अनीति' ने 'अधर्म' का शिरोच्छेद कर दिया और धर्म स्थापना की नींव रख दी ।

शायद ! आज के परिप्रेक्ष्य में भी यह सटीक  लग रहा है। जो समझ गए वह ठीक है बाकियों को भी समझना होगा।

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