kisan bil wapis kyu liya gaya?


*किसान बिल से पहले देश बचाना जरूरी था* आंदोलन की आड़ में खालिस्तानी गैंग जो देश विरोधी एजेंडा चला रहा था वो दुकान आज बंद हुई *...*…

पिछले हफ्ते कनाडा और ब्रिटेन में खालिस्तानी रिफरेंडम चलाया गया *जिसने पंजाब को भारत से अलग करके सिक्ख और ईसाई देश बनाने की नाकाम घोषणा की गई* 336 करोड़ रुपये का फंड जुटाकर ISI की मदद से सिक्खों को भड़काने की योजना बनाई गई *पंजाब चुनाव से पहले बेअदबी के नाम पर दंगे का प्लान भी तैयार था ...*…

पाकिस्तान के साथ चीन भी साथ दे रहा था *कृषि बिलों को वापिस लेने के फैसले से सबसे ज़्यादा मायूस शायद आज खुद पीएम होंगे लेकिन उन्होंने देश ना झुके इसलिए खुद झुकना सही समझा !!!!!!!!!*

*देश नहीं झुकने देंगे*

इंदिरा गाँधी को पँजाब से खालिस्तानी आंदोलन खत्म करने की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी थी। *वास्तविकता ये है कि कृषि कानूनों की आ ड़ में खालिस्तानी आंदोलन ही चल रहा था और इसके लिए इस्तेमाल किसान किए जा रहे थे।* आंदोलन खत्म करना आन्दोलनकारियों का उद्देश्य था ही नही, बल्कि इसे और लंबे वक्त तक चलाए जाने के लिए लगातार विदेशी फ़ंडिंग भी हो रही थी।
*पँजाब चुनाव के वक्त खालिस्तानी आंदोलन के और ज्यादा हिसंक होने के पूरे आसार थे। पँजाब में भाजपा पूरी तरह जनाधार रहित है, कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ कुछ हद तक लड़ाई लड़ सकती है।* चुनावों में सिद्धू या केजरीवाल की जीत स्पष्ट रूप से खालिस्तानियों की जीत होती। *कृषि कानून वापस लेकर मोदी जी ने एक देश विरोधी आंदोलन की भ्रूण हत्या कर दी।* कानून वापस लेने का  क्रेडिट कैप्टन अमरिंदर को जायेगा और पंजाब में भाजपा के साथ उनका चुनाव के लिए गठबंधन होगा। 

कैप्टन की देशभक्ति पर किसी को शक नहीं हो सकता और *पंजाब अनन्त काल तक देश का हिस्सा रहे, इसके लिए केजरी और सिद्धू के हाथ से पँजाब को बचाना* व्यक्तिगत रूप से आवश्यक भी था। मोदी ने उन कानूनों को वापस लिया है जो लागू ही नहीं थे, ऐसा करके मोदी ने देश द्रोहियों के अरमानों पर पानी फेर दिया है। *अब खालिस्तानी बेरोजगार होकर अपने प्रान्त पँजाब चले जाएंगे और कुछ केनेडा।* टिकैत को भी वापस यूपी आना पड़ेगा और यहाँ अपने योगी जी भी हैं और उनकी टीयूवी भी।

*सुधारों को झटका देने वाला फैसला* : *महज प्रदर्शनकारियों के दबाव में कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर नहीं हुई मोदी सरकार ...*…

यह दलील बहुत गले नहीं उतरती कि सरकार महज प्रदर्शनकारियों के दबाव में आकर कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर हुई *इसके कई और कारण होंगे* लेकिन इसका सबसे बड़ा नुकसान देश में कृषि सुधारों के भविष्य को भुगतना होगा *………

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