☘️ आकर्ण धनुरासन (aakarndhanurasan): कब्ज सहित पेट की बीमारियों और मसल्स मजबूत करने का श्रेष्ठ आसन, जानिए इसकी विधि और लाभ
आकर्ण धनुरासन, संस्कृत भाषा का शब्द है। ये शब्द कुल 4 शब्दों से मिलकर बना है। पहला शब्द 'आ' है। आ का अर्थ आह्वान से है। आह्वान शब्द का अर्थ होता है बुलाना, पुकारना, खींचना या आकर्षित करना।
दूसरे शब्द 'कर्ण' का अर्थ होता है 'कान'। ये शरीर का अंग भी होता है। तीसरे शब्द 'धर्नु' का अर्थ धनुष से होता है। जबकि चौथे शब्द आसन का अर्थ किसी विशेष स्थिति में बैठने, खड़े होने या लेटने से है। इसे अंग्रेजी में Pose या पोश्चर (Posture) भी कहा जाता है।
आकर्ण धनुरासन भी धनुरासन के समान ही है। धनुष के कमान को जब पकड़कर खींचा जाता है, तब उसमें एक तनाव का बल कार्य करता है। इस आसन में शरीर की मुद्रा को तो खींचे हुए धनुष की आकृति में लाया ही जाता है, साथ ही पेशियों के तनाव का बल भी उसी प्रकार कार्य करता है, जिस प्रकार कमान खींचे हुए धनुष में तनाव बल कार्य करता है।
वस्तुतः आकर्ण धनुरासन का मतलब है धनुष की प्रत्यंचा (डोर) की तरह पांव को कान तक खींचना।
जब कोई धनुष-बाण चलाता है तो उस अवस्था में बाण (तीर) के पीछे के हिस्से को कान तक खींचकर लाया जाता है। इस प्रत्यंचा चढ़ाकर रखने की स्थिति को ही आकर्ण धनुरासन कहा जाता है।
आकर्ण धनुरासन करने के लाभ
आकर्ण धनुरासन करने से बाहु, घुटने तथा जंघा आदि अंग पुष्ट होते हैं। कुर्सी पर बैठकर कार्य करने वाले व्यक्तिओं के लिए यह आसन बहुत लाभदायक है। आकर्ण धनुरासन करने से कंधे एवं कमर की पेशियां भी मजबूत होती हैं तथा पेट के रोग और यकृत के रोग में भी लाभ पहुंचाता है।
कूल्हों और पैरों में लचीलेपन के लिए यह आसन महत्वपूर्ण है। इसके नियमित अभ्यास से हाथ-पैरों के जोड़ों के दर्द दूर होते हैं। इससे पेट, पीठ और छाती के रोग दूर होते हैं।
आकर्ण धनुरासन के नियमित अभ्यास से, हाथ और कंधे,बाइसेप्स और ट्राईसेप्स, हैमस्ट्रिंग,हिप्स ,घुटनों को स्ट्रेच मिलता है।
आकर्ण धनुरासन के नियमित अभ्यास से शरीर को कई महत्वपूर्ण फायदे मिलते हैं। जैसे, टांगों की मांसपेशियों को बेहतरीन स्ट्रेच देकर मजबूत बनाता है।
- शरीर की कोर मसल्स को टोन करने में मदद करता है।
- पूरे शरीर में रक्त संचार बढ़ाने में मदद करता है।
- पाचन संबंधी समस्याओं को दूर करता है।
- पुरानी कब्ज को भी ठीक करने में मदद करता है।
- बड़ी आंत और पेट के निचले हिस्से में होने वाले दर्द को दूर करता है।
- फेफड़ों को फैलाता है और सांस लेने की क्षमता का विकास करता है।
- शरीर के कई अंगों में लचीलापन बढ़ाता है। इन अंगों में, जांघें , ग्रोइन, चेस्ट , कंधे, रीढ़ की हड्डी, पेट की मसल्स, गर्दन आदि शामिल हैं।
आकर्ण धनुरासन करने की विधि
सबसे पहले किसी स्वच्छ, समतल, शांत और सुरक्षित स्थान पर उचित आसन बिछाकर उस पर टांगे सामने की और लंबी करते हुए दंडासन में बैठ जाए
अब हाथों को कमर से सटाते हुए हथेलियां भूमि पर रखें। कमर, कंधा और सिर सीधा रखें। सामने देखें। गहरी श्वास लें।
फिर अब श्वास छोड़ते हुए अपने दोनो हाथो से दोनो पावों के अंगूठे को पकड़े अर्थात बाए हाथ से बाए पाव के अंगूठे और दाहिने हाथ से दाहिने अंगूठे को
(आप विपरित हाथो से भी ये क्रिया कर सकते है)
फिर श्वास को खींचते हुए दायें पांव के अंगुठे को दाएं हाथ से पकड़ कर बाए कान से लगाना चाहिए
बायां पांव सीधा रखते हुए बाए हाथ से उसका अंगुठा पकडे रहना चाहिए।
सांस को अन्दर खींचकर इस अवस्था में सरलता से जितनी देर रह सकते हैं, रहें। इसके बाद सांस छोड़ते हुए आसन तोड़कर पुनः दंडासन अर्थात पहली स्टेप में आ जाएं।
इस क्रिया को यूं भी दोहरा सकते है कि बाएं पांव के अंगुठे को दाएं हाथ से पकड़ कर दाएं कान से लगाना चाहिए तथा बाएं हाथ से दाएं पांव का अंगुठा पकाड़ना चाहिए। इस प्रकार परिवर्तन करते हुए इस आसन को कम से कम चार-पांच बार करना चाहिए।
अवधि/दोहराव
आकर्णधनुरासन की स्थिति में सुविधानुसार 30 सेकंड से एक मिनट तक रहा जा सकता है। इसे दो से तीन बार किया जा सकता है।
आकर्ण धनुरासन करते समय सावधानियां
आकर्ण धनुरासन, प्रातःकाल के समय पूर्व दिशा की ओर मुंह करके एवं शाम के समय पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके करना चाहिए।
पैर को उठाकर पंजे को कान से सटाने में कठिनाई होती है, अतः इसे सावधानी से व धीरे-धीरे अभ्यास करके ही करें।
आकर्ण धनुरासन को करने में जोर-जबरजस्ती न करें। जितना सरलता से हो सके, उतना ही करें।
यदि पैर, कुल्हे और पेट में किसी किस्म का गंभीर रोग हो तो इस आसन को न करें।