"एक सुंदरता तो चेहरे की होती है। और दूसरी सुंदरता होती है, उत्तम आचरण की।" जो लोग चेहरे से सुंदर दिखते हैं, यह आवश्यक नहीं है, कि वे आचरण से भी सुंदर हों। अर्थात उनका आचरण भी उत्तम हो, ऐसा कोई अनिवार्य नियम नहीं है। "बहुत से सुंदर चेहरे वाले लोग, दुष्ट आचरण भी करते हैं। इसलिए चेहरे से सुंदर दिखना एक अलग बात है, और उत्तम आचरण होना एक अलग बात है।"
और संसार में ऐसा भी देखा जाता है, कि जो उत्तम आचरण करने वाले लोग होते हैं, वे भी दोनों प्रकार के होते हैं। "किन्हीं लोगों का चेहरा सुंदर होता भी है, और किन्हीं का चेहरा इतना सुंदर नहीं भी होता। उनका रूप रंग अधिक आकर्षक नहीं होता, फिर भी उनका आचरण बहुत अच्छा होता है, जो लोगों को आकर्षित करता है।" "ऐसे लोग भी अपने उत्तम आचरण के कारण बुद्धिमान लोगों को सुंदर दिखाई देते हैं। वे मन की आंखों से सुंदर दिखते हैं। उनके उत्तम आचरण से जो दूसरों को सुख मिलता है, उसके सामने, सुंदर चेहरे से प्राप्त होने वाला सुख, फीका पड़ जाता है।"
सारी बात का सार यह हुआ, कि "किसी के चेहरे की सुंदरता को देखकर ऐसा न मान लेवें, कि उसका आचरण भी अच्छा होगा, और वह 'चेहरा एवं आचरण' इन दोनों प्रकार से सुंदर होगा।" और ऐसा भी नहीं है, कि "जिसका आचरण अच्छा हो, उसका चेहरा भी सुंदर अवश्य ही होना चाहिए।"
"परंतु यदि दोनों की तुलना करें, तो सुंदर चेहरा इतना मूल्यवान नहीं है, जितना कि उत्तम आचरण। कारण यह है, कि उत्तम आचरण ही अधिक सुखदायक है, न कि सुंदर चेहरा।"
"यदि किसी का चेहरा तो सुंदर हो, परंतु आचरण से वह व्यक्ति दुष्ट हो, चरित्रहीन हो, तो वह व्यक्ति सुखदायक नहीं होगा।" "परंतु यदि किसी का चेहरा अधिक सुंदर न भी हो, और उसका आचरण उत्तम हो, तो वह व्यक्ति सुंदर चेहरे वाले दुष्ट व्यक्ति की तुलना में अधिक सुखदायक होगा।" "इसलिए केवल सुंदर चेहरे की ओर आकर्षित न हों। उत्तम आचरण वाले व्यक्ति की ओर आकर्षित होना चाहिए।"
"अतः सावधानी का प्रयोग करें। उत्तम आचरण वाले व्यक्ति को ही वास्तविक सुंदर व्यक्ति मानें, और उसके साथ अपना जीवन बिता कर उससे सुख प्राप्त करें।" "यदि उत्तम आचरण वाले व्यक्ति का चेहरा भी सुंदर हो, फिर तो बात ही क्या है! तब तो सोने पर सुहागा।"