Gangaur Puja Ki katha in Hindi - गणगौर पूजा की कथा

 पत‍ि की लंबी उम्र की कामना हो या मनचाहा वर पाने की कामना हो। मह‍िलाएं मां गौरी का गणगौर व्रत करती हैं। यह व्रत मुख्‍यत: राजस्‍थान का पर्व है जो प्रत्‍येक वर्ष चैत्र मास की शुक्‍ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। इस बार यह व्रत 15 अप्रैल यानी क‍ि आज है। यह व्रत सुहाग‍िनें अपने पत‍ि को बताएं ब‍िना ही रखती हैं। आइए जानते हैं क्‍यों है ऐसी अनोखी परंपरा…

एक बार की बात है कि भगवान शिव शंकर और माता पार्वती भ्रमण के लिये निकल पड़े, उनके साथ में नारद मुनि भी थे। चलते-चलते एक गांव में पंहुच गये उनके आने की खबर पाकर सभी उनकी आवभगत की तैयारियों में जुट गये। कुलीन घरों से स्वादिष्ट भोजन पकने की खुशबू गांव से आने लगी। लेकिन कुलीन स्त्रियां स्वादिष्ट भोजन लेकर पंहुचती उससे पहले ही गरीब परिवारों की महिलाएं अपने श्रद्धा सुमन लेकर अर्पित करने पंहुच गयी। माता पार्वती ने उनकी श्रद्धा व भक्ति को देखते हुए सुहाग रस उन पर छिड़क दिया। जब उच्च घरों स्त्रियां तरह-तरह के मिष्ठान, पकवान लेकर हाज़िर हुई तो माता के पास उन्हें देने के लिये कुछ नहीं बचा तब भगवान शंकर ने पार्वती जी कहा, अपना सारा आशीर्वाद तो उन गरीब स्त्रियों को दे दिया अब इन्हें आप क्या देंगी? माता ने कहा इनमें से जो भी सच्ची श्रद्धा लेकर यहां आयी है उस पर ही इस विशेष सुहागरस के छींटे पड़ेंगे और वह सौभाग्यशालिनी होगी। तब माता पार्वती ने अपने रक्त के छींटे बिखेरे जो उचित पात्रों पर पड़े और वे धन्य हो गई। लोभ-लालच और अपने ऐश्वर्य का प्रदर्शन करने पंहुची महिलाओं को निराश लौटना पड़ा। मान्यता है कि वह दिन चैत्र मास की शुक्ल तृतीया का दिन था तब से लेकर आज तक स्त्रियां इस दिन गण यानि की भगवान शिव और गौर यानी क‍ि माता पार्वती की पूजा करती हैं।

पौराण‍िक कथा के अनुसार जब सभी मह‍िलाएं मां गौरी से आशीर्वाद लेकर अपने-अपने घर को लौट गईं तो देवी पार्वती ने भोलेनाथ से अनुमत‍ि लेकर पास ही स्थित एक नदी के तट पर स्नान किया और बालू से महादेव की मूर्ति स्थापित कर उनका पूजन किया। पूजा के बाद बालू के पकवान बनाकर ही भगवान शिव को भोग लगाया। तत्पश्चात प्रदक्षिणा कर तट की मिट्टी का टीका मस्तक पर लगाया और बालू के दो कणों को प्रसाद रूप में ग्रहण कर भगवान शिव के पास वापस लौट आईं। अब शिव तो सर्वज्ञ हैं जानते तो वे सब थे पर माता पार्वती को छेड़ने के लिये पूछ लिया कि बहुत देर लगा दी आने में? माता ने जवाब देते हुए कहा कि मायके वाले मिल गए थे उन्हीं के यहां इतनी देर लग गई। तब और छेड़ते हुए कहा कि आपके पास तो कुछ था भी नहीं स्नान के पश्चात प्रसाद में क्या लिया? माता ने कहा कि भाई व भावज ने दूध-भात बना रखा था उसे ग्रहण कर सीधी आपके पास आई हूं। अब भगवान शिव ने कहा कि चलो फिर उन्हीं के यहां चलते हैं आपका तो हो गया लेकिन मेरा भी मन कर गया है कि आपके भाई भावज के यहां बने दूध-भात का स्वाद चख सकूं।

माता ने मन ही मन भगवान शिव को याद किया और अपनी लाज रखने की कही। नारद सहित तीनों नदी तट की तरफ चल दिये। वहां पहुंच क्या देखते हैं कि एक आलीशान महल बना हुआ है। वहां उनकी बड़ी आवभगत होती है। इसके बाद जब वहां से प्रस्थान किया तो कुछ दूर जाकर ही भगवान शिव बोले कि मैं अपनी माला आपके मायके में भूल आया हूं। माता कहने लगी ठीक है मैं अभी ले आती हूं तब भगवान शिव बोले आप रहने दें नारद जी ले आएंगे। अब नारदजी चल दिये उस स्थान पर पंहुचे तो हैरान रह गए। उन्‍होंने देखा क‍ि चारों और केवल मैदान ही मैदान है। महल का तो नामों निशान तक नहीं। तभी उनकी नजर एक वृक्ष पर पड़ी ज‍िसपर रूद्राक्ष की माला टंगी हुई थी। उसे लेकर वह लौट आए फ‍िर भोलेनाथ को सारी बात बताई। तब भोलेनाथ ने कहा कि यह सारी पार्वती की माया थी। वह अपने पूजन को गुप्त रखना चाहती थी इसलिये उन्होंने झूठ बोला और अपने सत के बल पर यह माया रच भी दी। यही दिखाने के लिये मैनें तुम्हें वापस भेजा था।

तब नारद ने माता के सामने नतमस्तक होकर कहा कि हे मां आप सर्वश्रेष्ठ हैं, सौभाग्यवती आदिशक्ति हैं। गुप्त रूप से की गई पूजा ही अधिक शक्तिशाली एवं सार्थक होती है। हे मां मेरा आशीर्वचन है कि जो स्त्रियां इसी तरह गुप्त रूप से पूजन कर मंगल कामना करेंगी महादेव की कृपा से उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। तभी से लेकर गणगौर के इस गोपनीय पूजन की परंपरा चली आ रही है।

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