इंसान समय समय पर दुखी होता रहता है. और दुखी होने के बाद उस दुःख कारण खोजता है. उस दुःख को दूर करने का भी भरसक प्रयास करता है. तब भी व्यक्ति को यह समझ नहीं आता कि उसके सभी दुखो का मूल कारण केवल और केवल एक ही है.
💐दुख का एकमात्र कारण -अपेक्षा/कामना💐
एक बार एक सेठजी ने पंडित जी को भोजन के लिए आमन्त्रित किया पर पंडित जी का एकादशी का व्रत था तो पंडित जी नहीं जा सके थे इसलिए पंडित जी ने अपने दो शिष्यो को सेठजी के यहाँ भोजन के लिए भेज दिया.
पर जब दोनों शिष्य वापस लौटे तो उनमे एक शिष्य दुखी और दूसरा प्रसन्न था!
पंडित जी को देखकर आश्चर्य हुआ और पूछा बेटा क्यो दुखी हो -- क्या सेठ ने भोजन मे अंतर कर दिया ?
"नहीं गुरु जी"
क्या सेठ ने आसन मे अंतर कर दिया ?
"नहीं गुरु जी"
क्या सेठ ने दक्षिणा मे अंतर कर दिया ?
"नहीं गुरु जी ,बराबर दक्षिणा दी 2 रुपये मुझे और 2 रुपये दूसरे को"
अब तो गुरु जी को और भी आश्चर्य हुआ और पूछा फिर क्या कारण है ?
जो तुम दुखी हो ?
तब दुखी चेला बोला गुरु जी मे तो सोचता था सेठ बहुत बड़ा आदमी है कम से कम 10 रुपये दच्छिना देगा पर उसने 2 रुपये दिये इसलिए मे दुखी हू !!
अब दूसरे से पूछा तुम क्यो प्रसन्न हो ?
तो दूसरा बोला गुरु जी मे जानता था सेठ बहुत कंजूस है आठ आने से ज्यादा दच्छिना नहीं देगा पर उसने 2 रुपए दे दिये तो मे प्रसन्न हू ...!
बस यही हमारे मन का हाल है संसार मे घटनाए समान रूप से घटती है पर कोई उनही घटनाओ से सुख प्राप्त करता है कोई दुखी होता है ,पर असल मे न दुख है न सुख ये हमारे मन की स्थिति या अपेक्षा के स्तर पर निर्भर है!
कामना पूरी न हो तो दुख और कामना पूरी हो जाये तो सुख पर यदि कोई कामना ही न हो तो आनंद ...
सदैव प्रसन्न रहिये
जो प्राप्त है-पर्याप्त है