सुखी जीवन का रहस्य

 सुखी जीवन का रहस्य― मन में सबके लिए सद्`भाव रखना, संयमपूर्ण सच्चरित्रता के साथ समय व्यतीत करना, दूसरों की भलाई के लिए प्रयत्नशील रहना, वाणी का केवल सत्प्रयोजनों के लिए उपयोग करना, न्यायपूर्ण कमाई पर ही गुजारा करना, भगवान का स्मरण करते रहना, अपने कर्तव्य पर आरूढ़ रहना, अनुकूल प्रतिकूल परिस्थितियों में विचलित न होना यही नियम है जिनका पालन करने से जीवन यज्ञमय बन जाता है ...…


मनुष्य जीवन को सफल बना लेना ही सच्ची दूरदर्शिता और बुद्धिमानी है जब तक हममें अहंकार की भावना रहेगी तब तक त्याग की भावना का उदय होना कठिन है ...…

एक ओर जहां काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार दु:ख के कारण हैं तो वहीं दूसरी ओर तप, त्याग, दया, क्षमा और उदारता ही सुख और मुक्ति के मार्ग हैं ...…

जिन्हें हमें अपने जीवन में आत्मसात करने की जरूरत है यही सुखी जीवन का रहस्य है 

-दूसरा व्यक्ति आप की  आंखो को देख कर अनुमान लगा  लेता है कि आप वास्तव में उसे थपकी देना चाहते हैं  अथवा उसकी उपेक्षा करना चाहते  हैं  । 

-जब आप बात कर रहें हो और  आप की  आँखे घूमती रहती हैं  तो दूसरा इस का सहज अर्थ लगा लेगा कि आप को उसकी बातो में दिलचस्पी नहीं है । 

-हम जो बोलते हैं, उन बोलो के पीछे मानसिक संदेश भी भेजते हैं । 

-कान सिर्फ आवाज सुनते हैं  । आवाज मीठी,  सुरीली और  विनम्र भी हो सकती है,  परन्तु उसके पीछे जो मन के भाव हैं  वह छुप नहीं सकते  । 

- हरेक व्यक्ति के मन में यह विशेषता है कि  वह बोल के पीछे मन के भाव पढ  लेता है । 

-मन में बहुत स्नेह रखो ।  बाबा -भगवान - के गुण गाते रहो  बाबा आप प्यार के  सागर हैं  ।  लगभग तीन घंटे बैठ कर योग करें तब हमारे मन में इतना बल पैदा हो जाता है कि हम किसी भी व्यक्ति को बदल सकेगे । 

-दूसरी विधि  है जो व्यक्ति तिरस्कार करता है  उस से बात करते समय  अपने मन में दया भाव,  कल्याण भाव रखना चाहिए ।  अगर जरा भी मन में कोई विपरीत भाव है तो वह तिरस्कार करेगा । क्योकि उसका मन आप का भाव पढ़ लेता है । 

-आप का संकल्प शुध्द है उसकी निशानी यह है कि जब आप उस से दूर होते हैं  उस समय आप के मन में उसके प्रति कैसे संकल्प उठते हैं  और जब उस से सामना होता है तो आप को कैसा संकल्प उठा ।  

-अपने संकल्प को शक्तिशाली बनाओ ।  

-जो व्यक्ति योग नहीं लगाता वह कठोर बना रहेगा । सिर्फ योग से और शुभ भाव,  दया के भाव से दूसरे को बदल सकते हैं . । 

-तिरस्कार कर्ता  कोई बात कहता है,  कुछ बोलता है,  उस समय आप को कैसा लगा,  क्या आप का मन प्रतिक्रिया  कर रहा है,  उसे उल्टा जवाब देने का मन करता  है तो उस  संकल्प  को बदलो और  मन में उसके प्रति कोई अच्छा विचार लाओ, आप का कल्याण हो,  आप को शांति मिले,   आप को सुख मिले या कोई और अच्छा भाव  लाओ फिर जवाब दो ।  तब वह आप को  बुरी प्रतिक्रिया  नहीं करेगा । 

-दोनो एक दूसरे  की  आंखो पर  अनवरत ध्यान  लगाए ताकि ऐसा भान  हो कि दूसरा पक्ष कान से नहीं आंखो से सुन रहा है ।  अगर आप उस से आँखे नहीं मिला सकते हैं या आप का मन उस के नेत्रो में निहारने   को नहीं करता तो इस का मतलब है कि आप भी उसे तिरस्कृत कर रहे  हैं  ।  

-जिस दिन आप का मन उस से दृष्टि मिलाने का होगा तभी समझो आप उसे नकार नहीं रहे हैं ?और वह भी नकारात्मक  नहीं बनेगा ।  मान  लो वह  साकारात्मक  प्रतिक्रिया  नहीं देता है,  तब भी उसके व्यवहार  से  आप आहत नहीं होंगे । 

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