सम्पूर्ण सृष्टि को परमात्मा ने जोड़े से उत्पन्न किया है। सृष्टि के मूल में नारी को रखते हुए उसका महिमामण्डन स्वयं परमात्मा ने किया है। नारी के बिना सृष्टि की संकल्पना ही व्यर्थ है। नारी की महिमा को प्रतिपादित करते हुए हमारे शास्त्रों में लिखा है:-
"वद नारी विना को$न्यो, निर्माता मनुसन्तते !
महत्त्व रचनाशक्ते:, स्वस्या नार्या हि ज्ञायताम् !!"
अर्थात:- मनुष्य की निर्मात्री/जन्मदात्री नारी ही है, सम्पूर्ण समाज के साथ-साथ नारी को भी अपनी शक्ति का महत्त्व समझना चाहिए। नारी से ही मनुष्य उत्पन्न होता है, पिता के वीर्य की एक बूँद ही निमित्त होती है शेष बालक के समस्त अंग-प्रत्यंग माता के रक्त से ही निर्मित होते हैं। नारी शक्ति महत्ता दर्शाने का पर्व है "शारदीय नवरात्र"। भारत में नवरात्र एक ऐसा पर्व है, जो हमारी संस्कृति में महिलाओं के गरिमामय स्थान को दर्शाता है। नारी शक्ति को उद्दीपित करता हुआ यह पर्व यही बताता है कि नारी कभी भी अबला नहीं हो सकती। महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती के पूजन के साथ ही महामाया के दिव्य नौ स्वरूपों की पूजा नवरात्र में की जाती है। नवदुर्गा के पूजन के क्रम में प्रथम शक्ति हैं "माँ शैलपुत्री" किसी भी नारी के जीवन का प्रथम अध्याय पुत्री के रूप में ही लिखा जाता है।
नारी की प्रथम पहचान किसी की पुत्री के ही रूप में होती है। यदि पुत्रियाँ नहीं होंगी तो विचार कीजिए कि संसार में आगे की सृष्टि कैसे चलेगी ? पुत्रियों की आवश्यकता स्थापित करने के लिए ही महामाया आदिशक्ति ने हिमालय के यहाँ "शैलपुत्री" के रूप में अवतार लिया था। नवरात्र का व्रत एवं पूजन सर्वप्रथम भगवान श्रीराम ने किया था जिसके फलस्वरूप आदिशक्ति के वरदान के बल पर उन्होंने रावण जैसे दुर्दान्त निशाचर का वध किया। प्रेम से किया गया पूजन विधान कभी निष्फल नहीं जाता है। संसार में पुत्रियों की सुरक्षा की दृष्टि से ही हमारे मनीषियों ने यह बताने का प्रयास किया है कि नवरात्रि का व्रत एवं पूजन बिना कन्या पूजन व कन्या भोज के सम्पन्न ही नहीं हो सकता, अत: यदि नवरात्रि में आदिशक्ति की पूजा का फल प्राप्त करना है तो प्रथम दिवस से ही शैलपुत्री का पूजन करते हुए पुत्रियों के संरक्षण का संकल्प भी लेना चाहिए।
०७ अक्तूबर से चारों ओर दुर्गापूजा की धूम मच गई है। गांव-गांव में शहर-शहर में पांडाल लगा कर के दुर्गा जी की प्रतिमा स्थापित करके ०९ दिन तक तरह-तरह से लोग शक्ति का यह पर्व मनाएंगे। इन ०९ दिनों में लोगों के अंदर जितना भक्ति भाव जागृत होता है, यदि वही वर्ष भर रहे तो इस संसार का स्वरूप ही बदल जाय। आज के परिवेश को देखते हुए कन्या पूजन का महत्व कुछ समझ में नहीं आता।
आज जिस प्रकार स्त्रियों की गर्भ में ही हत्या कर दी जा रही है, और विकृत समाज एवं परिवेश में जिस प्रकार कन्याओं का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो रहा है, ऐसे में यह कन्या पूजन कहीं न कहीं से उन कन्याओं के प्रति सम्मान प्रदर्शित करता है। किसी भी पूजन को प्रारंभ करने के पहले संकल्प लिया जाता है, जिसका अर्थ होता है प्रतिज्ञा करना। आज इस बात का संकल्प लेने की आवश्यकता है कि हम जिस नारी शक्ति का पूजन करने का संकल्प ले रहे हैं, वह किसी भी रूप में हो उसकी सुरक्षा एवं सम्मान बचाना यह हमारा कर्तव्य है, क्योंकि जिस शक्ति की पूजा करने का आयोजन इतना भव्य किया जा रहा है उन शक्तियों के संरक्षण का भार भी इन्हीं नवयुवकों के कंधे पर है। यह उनकी नैतिक जिम्मेदारी है कि जिस प्रकार महामाया के विभिन्न स्वरूपों में नारी का सम्मान वे अपने घर में करते हैं, उसी प्रकार सभी नारियों का सम्मान करने का संकल्प लेने से ही दुर्गापूजा मनाने का उद्देश्य पूर्ण होगा। प्रथम दिवस "मैया शैलपुत्री" के लिए समर्पित होता है अत: पहले दिन से ही पुत्रियों के संरक्षण का संकल्प लेना ही होगा अन्यथा यह पर्व मनाना व्यर्थ ही है।
यह पर्व मनाते समय जब मनुष्य शक्ति की उपासना करता है तो उसके हृदय में नारियों के प्रति सम्मान स्वयं जग जाता है, शायद इसीलिए आदिशक्ति शक्ति के पूजन का प्रचलन हुआ, जिससे कि अपने संस्कारों से विमुख होता यह समाज एक बार पुनः स्वयं को स्थापित करने का प्रयास करे, और यह तभी संभव होगा जब मनुष्य की मानसिकता में परिवर्तन होगा। आज गर्भ में ही अपनी पुत्री की हत्या करवा देने वाले कन्या पूजन के लिए घर-घर में कन्याओं को ढूंढते नजर आते हैं। विचार कीजिए आप जिस शक्ति का पूजन कर रहे हैं जब आपने उसी शक्ति के प्रथम स्वरूप अपनी ही पुत्री का वध कर दिया तो नवरात्र का व्रत रखने का कोई औचित्य नहीं, अतः यदि इस महापर्व के पूजन का फल प्राप्त करने हेतु सर्वप्रथम कन्याओं के संरक्षण का संकल्प लेना होगा।
कलश स्थापन करने के साथ ही यह संकल्प भी लेने की आवश्यकता है कि समाज में किसी भी नारी के ऊपर अत्याचार ना तो बर्दाश्त ही किया जाय और ना ही उनके सम्मान पर कोई आंच आने पाए। यह संकल्प लेने के बाद ही महामाया जगज्जननी मां पराअंबा जगदंबा भगवती दुर्गा हमारा पूजन स्वीकार करेंगी। अन्यथा यह पूजन का दिखावा मात्र होगा, जिसका परिणाम सुखद नहीं हो सकता।