परिवर्तन का नहीं बल्कि धारण करने का विषय है धर्म―
देश में अक्सर लोभ या बलपूर्वक मतांकरण करवाए जाने की खबरें सुनाई देती है इस षड्यंत्र में लगे लोगों और विदेशी ताकतों को समझना होगा कि धर्म न तो किसी तरह के दबाव में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया और ना ही यह लोभ-लालच में आकर बदली जाने वाली जीवनशैली है ...…
धर्म वह है जो किसी मनुष्य को श्रेष्ठ बनाता है यह मानव के भीतर शुद्ध अंतःकरण के संस्कार है जिसे धारण कर वह धर्म का हाथ थामे हुए अपना जीवन इस धरा के हित में लगा सकता है जो व्यक्ति अपना धर्म छोड़कर अन्य किसी मत को स्वीकार करता है वह फिर अपनी जड़ों अपनी जड़ों अपनी परंपराओं से भी कट जाता है ऐसा व्यक्ति फिर कहीं का नहीं रहता इतिहास में यह दर्ज है कि ऐसे लोग वैचारिक रूप से बहुत विपन्न होकर खत्म हो जाते है