कोई भी हिन्दू सोच सकता है कि जब भगवान सर्वशक्तिमान है, सर्वव्यापी हैं तो वो मानव रूप में क्यों अवतार लेते हैं और मानव की ही भांति कष्ट भी भोगते हैं, भूलोक में जब जिस समय सबसे बड़ा संकट होता है, तब ईश्वर ने अवतार लिया है और उस संकट से स्वयं लड़कर उस पर विजय प्राप्त की है. भगवान असल मे मानव को बड़े से बड़े संकट पर कैसे विजय प्राप्त की जा सकती है, उसकी ट्रेनिंग(शिक्षा) देने को ही अवतार लेते हैं. यही सत्य है
आज कलियुग में हम उस ट्रेनिंग को या खुद भगवान को ही किस रूप में देखते हैं ❓
भगवान, राम के रूप में अवतार लेते हैं तो हमे शिक्षित करते हैं कि अपने पर या समाज पर भी कितना ही बड़ा संकट आये अपनी मर्यादा को लांघना नहीं है और सत्य के मार्ग पर चलकर रावण पर भी विजय प्रदान करायेगा और मानव रूप में उन्होंने करके दिखाया ! .
नीति ही समझिये दुर्योधन को अपनी विशाल सेना देना तथा खुद अर्जुन के सारथी बन युद्ध के मैदान में सबसे आगे रह कर युद्ध का संचालन करना, कभी कभी लगता है कि कृष्ण ने अपनी ही सेना को पांडवों से बलिदान कराया है, पर यह भी तो समझने की बात है जब अपना राजा सामने रथ पर बैठा हो तो क्या उस सेना ने पांडवों की सेना का संहार किया होगा या उनका कौरवों की सेना में रहते हुए ही सहयोग किया होगा, पांडवों की सेना केवल पांडवों की ही तरफ नहीं थी बल्कि उनकी सेना कौरवों के खेमे में भी थी !
ये उनकी जीत का बहुत बड़ा आधार था !
भगवान, कृष्ण के रूप में अवतार लेते हैं तो हमे शिक्षित करते हैं कि छोटे छोटे ग्वाल बाल भी अपना संघटन खड़ा कर कंस जैसे अत्याचारी राजा का भी वध कर सकते हैं. फिर कृष्ण ही शिक्षित करते हैं कि अन्याय के विरूद्ध युद्ध करना "धर्म" है, धर्म की रक्षा के लिए युद्ध "धर्म" है, शत्रु नाश के लिए कोई भी अनीति भी नीति ही होती है !
आज कृष्ण की रणनीति पांडवों के बजाय कौरवों ने अपना ली है, पांडव कृष्ण को भूल गये हैं. कौरवों ने अपनी सेना पांडवों के बीच स्थापित की हुई है ! पांडवों को दुश्मन सेना से सामने से तो लड़ना पड़ ही रहा है पर अपने खेमे में बैठी कौरवों की सेना से भी दो चार होना पड़ रहा है ! अब भी यदि पांडव एक जुट हो इस संकट का हल खुद नहीं ढूँढेगे तो कलियुग में पांडवों की हार होगी !
भगवान तो लेकिन सत्य के साथ होते हैं तो अब भी भगवान अपना दूत को भेजते ही है, बस उसे पहचानने की आवश्यकता है ! पहचानिए!!