दीपावली का इतिहास


*_जानिए दीपावली कब से शुरू हुई और उन दिनों में क्या करना चाहिए..?_*
_दीपावली शब्द दीप एवं आवली की संधि से बना है । आवली अर्थात पंक्ति । इस प्रकार दीपावली का शाब्दिक अर्थ है, दीपों की पंक्ति। दीपावली के समय सर्वत्र दीप जलाए जाते हैं, इसलिए इस त्यौहार का नाम दीपावली है। भारतवर्ष में मनाए जानेवाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक एवं धार्मिक इन दोनों दृष्टियों से अत्यधिक महत्त्व है इसे दीपोत्सव भी कहते है। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय।’ अर्थात अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदों की आज्ञा है। अपने घर में सदैव लक्ष्मी का वास रहे, ज्ञान का प्रकाश रहे, इसलिए सभी अत्यंत हर्षोउल्लास से दीपावली मनाते हैं । प्रभु श्रीराम चौदह वर्ष का वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटे,  उस समय प्रजा ने दीपोत्सव मनाया। तब से प्रारंभ हुई दीपावली_
_‘श्रीकृष्ण ने आसुरी वृत्ति के नरकासुर का वध कर जनता को भोगवृत्ति, लालसा, अनाचार एवं दुष्टप्रवृत्ति से मुक्त किया एवं प्रभुविचार (दैवी विचार) देकर सुखी किया, यह वही ‘दीपावली’ है हम अनेक वर्षों से एक रूढ़ि के रूप में ही दीपावली मना रहे हैं आज उसका गुह्यार्थ लुप्त हो गया है। इस गुह्यार्थ को ध्यान में रखते हुए, अस्मिता जागृत हो तो अज्ञानरूपी अंधकार के साथ ही साथ भोगवृत्ति, अनाचारी एवं आसुरी वृत्ति के लोगों की प्रबलता अल्प होगी एवं सज्जनों पर उनका वर्चस्व अल्प होगा।_

*🚩दीपावली दृश्यपट (Deepavali Videos)*

*1. दीपावली का इतिहास:-*

_बलिराजा अत्यंत दानवीर थे द्वारपर पधारे अतिथि को उनसे मुंहमांगा दान मिलता था। दान देना गुण है; परंतु गुणों का अतिरेक दोष ही सिद्ध होता है। किसे क्या, कब और कहां दें, इसका निश्चित विचार शास्त्रों में एवं गीता में बताया गया है ।  सत्पात्र को दान देना चाहिए, अपात्र को नहीं। अपात्र मानवों के हाथ संपत्ति लगने पर वे मदोन्मत्त होकर मनमानी करने लगते है। बलि राजा से कोई, कभी भी, कुछ भी मांगता, उसे वह देते थे। तब भगवान श्रीविष्णु ने ब्रह्मचारी बालक का (वामन) अवतार  लिया। ‘वामन’ अर्थात छोटा। ब्रह्मचारी बालक छोटा होता है और वह ‘ॐ भवति भिक्षां देही’ अर्थात ‘भिक्षा दो’ ऐसा कहता है। विष्णु ने वामन अवतार लिया एवं बलिराजा के पास जाकर भिक्षा मांगी। बलिराजा ने पूछा, ‘‘क्या चाहिए ?’’ तब वामन ने  त्रिपाद भूमिदान मांगा। ‘वामन कौन है एवं इस दान से क्या होगा’, इसका ज्ञान न होने के कारण बलिराजा ने इस वामन को त्रिपाद भूमि दान कर दी। इसके साथ ही वामन ने विराट रूप धारण कर एक पैर से समस्त पृथ्वी नाप ली, दूसरे पैरसे अंतरिक्ष एवं फिर  बलिराजा से पूछा ‘‘तीसरा पैर कहां रखूं ?’’ उसने उत्तर दिया ‘‘तीसरा पैर मेरे मस्तक पर रखें’’। तब तीसरा पैर उसके मस्तक पर रख, उसे पाताल में भेजने का निश्चय कर वामन ने बलिराजासे कहा, ‘‘तुम्हें कोई वर मांगना हो, तो मांगो (वरं ब्रूहि)।’’ बलिराजा ने वर मांगा कि ‘अब पृथ्वी पर मेरा समस्त राज्य समाप्त होनेको है एवं आप मुझे पाताल में भेजनेवाले हैं, ऐसे में तीन कदमों के इस प्रसंग के प्रतीकरूप पृथ्वी पर प्रतिवर्ष कम से कम तीन दिन मेरे राज्य के रूप में माने जाएं। प्रभु, यमप्रीत्यर्थ दीपदान करनेवालेको यमयातनाएं न हो। उसे अपमृत्यु न आए । उसके घर पर सदा लक्ष्मीका वास हो।’ ये तीन दिन अर्थात कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी, अमावस्या एवं कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा । इसे ‘बलिराज्य’ कहा जाता है।_

*2. दीपावली कब मनाई जाती है ?*

_दीपावली पर्व के अंतर्गत आनेवाले महत्त्वपूर्ण दिन हैं, कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी (धनत्रयोदशी / धनतेरस), कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी (नरकचतुर्दशी), अमावस्या (लक्ष्मीपूजन) एवं कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा (बलिप्रतिपदा) ये तीन दिन दीपावली के विशेष उत्सव के रूप में मनाए जाते हैं । कुछ लोग त्रयोदशी को दीपावली में सम्मिलित न कर, शेष तीन दिनों की ही दीवाली मनाते हैं । वसुबारस अर्थात गोवत्स द्वादशी, धनत्रयोदशी अर्थात धनतेरस तथा भाईदूज अर्थात यमद्वितीया, ये दिन दीपावली के साथ ही आते है इसलिए, भले ही ये त्यौहार भिन्न हों,  फिर भी इनका समावेश दीपावली में ही किया जाता है । इन दिनों को दीपावली का एक अंग माना जाता है । कुछ प्रदेशों में वसुबारस अर्थात गोवत्स द्वादशी को ही दीपावली का आरंभदिन मानते है।_

_दीपावली आने से पूर्व ही लोग अपने घर-द्वार की स्वच्छता पर ध्यान देते हैं । घर का कूड़ा-करकट साफ करते हैं । घर में टूटी-फूटी वस्तुओं को ठीक करवाकर घर की रंगाई करवाते है  इससे उस स्थान की न केवल आयु  बढ़ती  है, वरन आकर्षण भी बढ़ जाता है । वर्षाऋतु में फैली अस्वच्छता का भी परिमार्जन हो जाता है । स्वच्छता के साथ ही घर के सभी सदस्य नए कपड़े सिलवाते हैं । विविध मिठाइयां भी बनायी जाती है । ब्रह्मपुराण में लिखा है कि दीपावली को श्री लक्ष्मी सदगृहस्थों के घर में विचरण करती हैं। घर को सब प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध एवं सुशोभित कर दीपावली मनानेसे श्री लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं तथा वहां स्थायीरूप से निवास करती हैं।_

*4. दीपावली में बनाई जानेवाली विशेष रंगोलियां:-*

_दीपावली के पूर्वायोजन का ही एक महत्त्वपूर्ण अंग है, रंगोली । दीपावली के शुभ पर्व पर विशेष रूप से रंगोली बनाने की प्रथा है । रंगोली के दो उद्देश्य हैं – सौंदर्य का साक्षात्कार एवं मंगल की सिद्धि । रंगोली देवताओं के स्वागतका प्रतीक है । रंगोली से सजाए आंगन को देखकर देवता प्रसन्न होते हैं । इसी कारण दिवाली में प्रतिदिन देवताओं के तत्त्व आकर्षित करने वाली रंगोलियां बनानी चाहिए तथा उस माध्यम से देवतातत्त्व का  लाभ प्राप्त करना चाहिए।_

*5. तेल के दीप जलाना:-*

_रंगोली बनाने के साथ ही दीपावली में प्रतिदिन किए जानेवाला यह एक महत्त्वपूर्ण कृत्य है । दीपावली में प्रतिदिन सायंकाल में देवता एवं तुलसी के समक्ष, साथ ही द्वार पर एवं आंगन में विविध स्थानों पर तेल के दीप लगाए जाते हैं । यह भी देवता तथा अतिथियों का स्वागत करने का प्रतीक है । आजकल तेल के दीप के स्थान पर मोम के दीप लगाए जाते हैं अथवा कुछ स्थानों पर बिजली के दीप भी लगाते हैं । परंतु शास्त्र के अनुसार तेल के दीप लगाना ही उचित एवं लाभदायक है । तेल का दीप एक मीटर तक की सात्त्विक तरंगें खींच सकता है । इसके विपरीत मोम का दीप केवल रज-तमकणों का प्रक्षेपण करता है, जबकि बिजली का दीप वृत्ति को बहिर्मुख बनाता है । इसलिए दीपों की संख्या अल्प ही क्यों न हो, तो भी तेल के दीप की ही पंक्ति लगाएं।_

*6. आकाश दीप अथवा आकाश कंडील:-*

_विशिष्ट प्रकारके रंगीन कागज, थर्माकोल इत्यादिकी विविध कलाकृतियां बनाकर उनमें बिजली के दिये लगाए जाते हैं, उसे आकाशदीप अथवा आकाशकंदील कहते हैं । आकाशदीप सुशोभन का ही एक भाग है।_

*7. दीपावली पर्व पर बच्चों द्वारा बनाए जानेवाले घरौंदे एवं किले:-*

_दीपावली के अवसर पर उत्तर भारत के कुछ स्थानों पर बच्चे आंगन में मिट्टी का घरौंदा बनाते हैं, जिसे कहीं पर ‘हटरी’, तो कहीं पर ‘घरकुंडा’के नाम से जानते हैं । दीप से सजाकर, इसमें खीलें, बताशे, मिठाइयां एवं मिट्टी के खिलौने रखते हैं । महाराष्ट्र में बच्चे किला बनाते हैं तथा उसपर छत्रपति शिवाजी महाराज एवं उनके सैनिकों के चित्र रखते हैं । इस प्रकार त्यौहारों के माध्यमसे पराक्रम तथा धर्माभिमान की वृद्धि कर बच्चों में राष्ट्र एवं धर्म के प्रति कुछ नवनिर्माण की वृत्ति का पोषण किया जाता है।_

*8. दीपावली शुभसंदेश देनेवाले दीपावली के शुभेच्छापत्र:*

_दीपावली के मंगल पर्व पर लोग अपने सगे-संबंधियों एवं शुभचिंतकों को, आनंदमय दीपावली की शुभकामनाएं देते हैं इसके लिए वे शुभकामना पत्र भेजते हैं तथा कुछ लोग उपहार भी देते हैं । ये साधन जितने सात्त्विक होंगे, देनेवाले एवं प्राप्त करनेवाले को उतना ही अधिक लाभ होगा । शुभकामना पत्रों के संदेश एवं उपहार, यदि धर्मशिक्षा, धर्मजागृति एवं धर्माचरणसे संबंधित हों, तो प्राप्त करनेवाले को इस दिशा में कुछ करने की प्रेरणा भी मिलती है । हिंदू जनजागृति समिति एवं सनातन संस्था द्वारा इस प्रकार के शुभेच्छापत्र बनाए जाते हैं।_

*_संदर्भ : सनातनका ग्रंथ, ‘त्यौहार मनाने की उचित पद्धतियां एवं अध्यात्मशास्त्र’ एवं अन्य ग्रंथ।

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