*माेदी जी लाैटा दाे हमको वाे पुराने ही दिन*
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वाे अपहरण की रातें , वाे घाेटालाें के दिन
वाे आजम का ईश्क ,वाे थरूर के सिन
कश्मीरी पंडितो का घर से बेघर होना
देश की सत्ता प्रतिष्ठान का खामोश रहना !
जंगलराज का वो आदमी अवतार
पशुओं का चारा तक निगलता बिहार !
वाे वाड्रा का व्यापार , वाे 84 का दंगा
माेदी जी हमकाे रहने दाे नंगा !
अच्छा हाेता तू पहाड़ाें में साेता
वँही पर हँसता, वँही पर राेता
तेरा क्यूँ हृदय दुख से भरा था
गाेधरा में तेरा काैन मरा था !
पहले क्या हम कभी गुलाम नँही रहे
बाबर के हाथाें के क्या जाम नँही रहे
कयूँ संसद के दरवाजे पर तूने माथा था टेका
हिन्दुस्तान का क्यों तूने लिया है ठेका !
जब देश में बढ़ती जैचन्दी जमात
उस पर गौरी पुत्रो का नया हमास !
शेर को ललकारता वो सूअरों का झुण्ड
मंदिरों से गायब करते पूजा के कुण्ड !
बस तू लाैटा दे हमारे वाे ही दिन
बस तू लाैटा दे हमारे वाे ही दिन
एक सहिष्णु धर्म निरपेक्ष
जिसका न धर्म न देश।
हम हिन्दू नही सुधरने वाले,
गुलामी मे ही रहने वाले ।
हम सिर्फ अपना स्वार्थ देख है,
देश /धर्म से हम को नही मतलब
क्योंकि हिन्दू है हम ....