सेमी कंडक्टर संकट: 10 अरब डॉलर (760 अरब रुपिया)

*सेमी कंडक्टर संकट: मोदी सरकार लाने वाली है 10 अरब डॉलर (760 अरब रुपिया) का मेगा पैकेज, देश में मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने के लिए कई कंपनियों के साथ चल रही बातचीत
*महत्वाकांक्षी योजना का समन्वय और निगरानी प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) द्वारा की जा रही है और कई मंत्रालयों को इस प्रक्रिया में शामिल किया गया है। सरकार ने सेमीकंडक्टर कंपनियों को लुभाने के लिए एक आकर्षक नीति को अंतिम रूप देने के लिए अथक प्रयास किया है।*

■  भारत देश में सेमीकंडक्टर्स के निर्माण को आगे बढ़ाने के लिए एक 10 अरब डॉलर का मेगा मल्टी-बिलियन-डॉलर कैपिटल सपोर्ट और प्रॉडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव प्लान लाने वाला है। 
■  यह कदम ऐसे समय में आया है, जब वैश्विक चिप की कमी के कारण सेक्टरों के उद्योगों को बड़े पैमाने पर उत्पादन में कटौती का सामना करना पड़ रहा है।
■  शीर्ष सेमीकंडक्टर निर्माताओं जैसे ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी (TSMC), Intel, AMD, Fujitsu, यूनाइटेड माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन के साथ सक्रिय चर्चा में लगे हुए हैं। 
■  वर्तमान में, भारत सेमीकंडक्टर की लगभग पूरी मांग को आयात के जरिए पूरा करता है। यह मांग अभी लगभग 24 अरब डॉलर की है, जिसके 2025 तक बढ़कर लगभग 100 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।
■  सरकार के मेगा प्लान में पूंजीगत व्यय पर वित्तीय सहायता, कुछ कंपोनेंट्स पर टैरिफ में कटौती, और स्कीम फॉर प्रमोशन ऑफ मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स एंड सेमीकंडक्टर्स (एसपीईसीएस) और उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीएलआई) जैसे प्रोग्राम्स के माध्यम से लाभ शामिल रह सकता है।
■  सरकार को विश्वास है कि रक्षा, ऑटोमोबाइल, अंतरिक्ष और नए जमाने की तकनीकों जैसे 5G व इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) जैसे अन्य उद्योगों की जरूरतों के अलावा एक बड़ा और तेजी से बढ़ता इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार, कंपनियों को भारत में निवेश करने के लिए प्रेरित करेगा।
■  घरेलू मांग बहुत अधिक होने वाली है। सरकार को उम्मीद है कि 2025 तक इलेक्ट्रॉनिक्स का घरेलू उत्पादन 350-400 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा, जो अभी अनुमानित 75 अरब डॉलर है। यह निवेश प्राप्त करने के लिए एक बड़ा प्रेरक होगा।

*वैसे तो भारत को चिप डिजाइन के क्षेत्र में मजबूत माना जाता है, लेकिन देश अपने यहां बहुप्रचारित फैब निर्माण को प्राप्त करने में विफल रहा है जिसमें 5 अरब डॉलर से लेकर 10 अरब डॉलर के बीच का निवेश शामिल है। हालांकि 2020 की शुरुआत में कोरोना महामारी की शुरुआत और खरीद के लिए 'चाइना प्लस 1' नीति पर ग्लोबल कंपनियां द्वारा सोच विचार किए जाने की वजह से भारत को निवेश प्राप्त करने में मदद मिलने की संभावना है।

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